एक वक़्त था कि दिल को सुकूँ की तलाश थी,
और अब ये आरज़ू है कि दर्द-ए-निहाँ रहे.
जीने के आरजू में मरे जा रहे है लोग,
मरने के आरजू में जिया जा रहा हु मै..
हर बार उसी से गुफ़्तगू सौ बार उसी की आरज़ू,
वो पास नहीं होता तो भी रहता है मेरे रूबरू..
छोड दी हमने हमेशा के लिए उसकी आरजू करना,
जिसे मोहब्बत की कद्र ना हो उसे दुआओ मे क्या मांगना..
वो वक़्त गुजर गया जब मुझे तेरी आरज़ू थी,
अब तू खुदा भी बन जाए तो मै सजदा न करूँ..
तेरा ख़याल तेरी आरजू न गयी,
मेरे दिल से तेरी जुस्तजू न गयी,
इश्क में सब कुछ लुटा दिया हँसकर मैंने,
मगर तेरे प्यार की आरजू न गयी..
एक पत्थर की आरजू करके,
खुद को ज़ख्मी बना लिया मैंने..
आरज़ू‘ तेरी बरक़रार रहे,
दिल का क्या है रहे, रहे न रहे..
कभी कभी सोचता हूँ
आखिर यहाँ कौन जीत गया,
मेरी आरज़ू उसकी ज़िद या
फिर मोहब्बत?
न किसी के दिल की हूँ आरज़ू
न किसी नज़र की हूँ जुस्तजू,
मैं वो फूल हूँ जो उदास हो
न बहार आए तो क्या करूँ..
ना खुशी की तलाश है
ना गम-ए-निजात की आरज़ू,
मै ख़ुद से ही नाराज हूँ
तेरी नाराजगी के बाद..
मुझे यह डर है तेरी आरज़ू न मिट जाये,
बहुत दिनों से तबियत मेरी उदास नहीं..
ख़राब-ए-दहर न मैं ख़ुद हुआ न तू ने किया,
जो कुछ किया तिरे मिलने की आरज़ू ने किया..
आरजू बस इतनी सी है,
जो चाहत थी बो बस एक,
बार फिर से मिले यही बस,
एक आरजू दिल में बसी है..
दिल में हर किसी का अरमान नहीं होता
हर कोई दिल का मेहमान नहीं होता,
एक बार जिसकी आरजू दिल में बस जाती है,
उसे भुला देना इतना आसान नहीं होता..
आज तक दिल की आरज़ू है वही
फूल मुरझा गया है बू है वही..
आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की,
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं.
कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को,
याद वही आते है जो उड़ जाते है..
आरजू थी की तेरी बाँहो मे, दम निकले,
लेकिन बेवफा तुम नही,बदनसीब हम निकले..
तेरे सीने से लगकर तेरी आरज़ू बन जाऊं,
तेरी साँसों से मिलकर तेरी खुशबु बन जाऊं..
ये हवा, ये रात ये चाँदनी
तेरी एक अदा पे निसार हैं,
मुझे क्यों ना हो तेरी आरजू
तेरी जुस्तजू में बहार है..
आने लगा हयात को अंजाम का ख्याल,
जब आरजुएं फैल-कर इक दाम बन गयीं..
तेरे इश्क का कितना हसीन एहसास है,
लगता है जैसे तु हर पल मेरे पास है,
मोहब्बत तेरी दिवानगी बन चुकी है मेरी,
और अब जिन्दगी की आरजू बस तुम्हारे साथ है..
तेरी जुस्तजू तेरी आरज़ू,
मेरे दिल में दिलनशीं तू ही तू,
ये आरज़ू थी के ऐसा भी कुछ हुआ होता,
मेरी कमी ने तुझे भी रुला दिया होता,
मैं लौट आता तेरे पास एक लम्हे में,
तेरे लबों ने मेरा नाम तो लिया होता..
तेरे सीने से लगकर तेरी आरज़ू बन जाऊं,
तेरी साँसों से मिलकर तेरी खुशबु बन जाऊं..
जीने की आरज़ू है,
तो जी चट्टानों की तरह,
वरना पत्तों की तरह,
तुझको हवा ले जायेगी..
ये आरज़ू थी तुझे गुल के रूबरू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते..
मरते हैं आरज़ू में मरने की,
मौत आती है पर नहीं आती..
मिर्ज़ा ग़ालिब
जब कोई नौजवान मरता है,
आरज़ू का जहान मरता है..
फ़ारूक़ नाज़की
दिल की आरज़ू थी कोई दिल रूवा मिले,
हकीकत न सही पर सपनों में ही मिलें..
मुददत से थी किसी से मिलने की आरज़ू
खुवाइश ए दिदार में सब कुछ भुला दिया,
किसी ने दी खबर वो आएंगे रात को,
इतना किया उजाला अपना घर तक जला दिया..
ये ज़िन्दगी तेरे साथ हो, ये आरज़ु दिन रात हो,
मैं तेरे संग संग चलूँ, तू हर सफर में मेरे साथ हो..
आरजू थी तुम्हारी तलब बनने की,
मलाल ये है कि तुम्हारी लत लग गयी..
आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की,
लम्हे तो खुद-व-खुद मिल जाया करते हैं..
आज खुद को तुझमे डुबोने की आरज़ू है,
क़यामत तक सिर्फ तेरा होने की आरज़ू है,
किसने कहा गले से लगा ले मुझको, मग़र
तेरी गोद में सर रखकर सोने की आरज़ू है..
ज़िन्दगी की आखरी आरजू बस यही हैं,
तू सलामत रहें दुआँ बस यही हैं..
क्योंकि तू आरजू मेरी थी,
पर अमानत शायद किसी और की..
जरूरी नहीं ये बिल्कुल कि तू
मेरी हर बात को समझे,
अब तुझसे शिकायत करना,
मेरे हक मे नहीं,
आरजू बस इतनी है कि
तू मुझे कुछ तो समझे..
बड़ी आरज़ू थी मोहब्बत को
बेनकाब देखने की,
दुपट्टा जो सरका तो
जुल्फें दीवार बन गयी..
ख़त लिखूं तो क्या लिखूं
आरजू मदहोश है,
ख़त पे गिर रहे हैं आंसू
और कलम खामोश है..
अब तुझसे शिकायत करना,
मेरे हक मे नहीं,
क्योंकि तू आरजू मेरी थी,
पर अमानत शायद किसी और की..
ख़त लिखूं तो क्या लिखूं
आरजू मदहोश है,
ख़त पे गिर रहे हैं आंसू
और कलम खामोश है..
अब तुझसे शिकायत करना,
मेरे हक मे नहीं,
क्योंकि तू आरजू मेरी थी,
पर अमानत शायद किसी और की..
कुछ आग आरज़ू की,
उम्मीद का धुआँ कुछ,
हाँ राख ही तो ठहरा,
अंजाम जिंदगी का..
आरज़ू मेरी, चाहत तेरी,
तमन्ना मेरी, उल्फत तेरी,
इबादत मेरी, मोहब्बत तेरी,
बस तुझ से तुझ तक है दुनिया मेरी..
आरज़ू हसरत और उम्मीद
शिकायत आँसू,
इक तिरा ज़िक्र था
और बीच में क्या क्या निकला..
तुझे पाने की आरज़ू में तुझे गंवाता रहा हूँ,
रुस्वा तेरे प्यार में होता रहा हूँ,
मुझसे ना पूछ तू मेरे दिल का हाल,
तेरी जुदाई में रोज़ रोता रहा हूँ..
दस्तक सुनी तो जाग उठा दर्दे आरज़ू,
अपनी तरफ क्यों आती नहीं प्यार की हवा..
मिलने से भी अजीब है मिलने की आरज़ू ,
है वस्ल से भी ज्यादा मज़ा इंतज़ार में..
आरज़ू ये नहीं कि ग़म का तूफ़ान टल जाये,
फ़िक्र तो ये है कि कहीं आपका दिल न बदल जाये,
कभी मुझको अगर भुलाना चाहो तो,
दर्द इतना देना कि मेरा दम ही निकल जाये..
थाम लेना हाथ मेरा कभी पीछे जो छूट जाऊँ,
मना लेना मुझे जो कभी तुमसे रूठ जाऊँ,
मैं पागल ही सही मगर मैं वो हूँ,
जो तेरी हर आरजू के लिये टूट जाऊँ..
ऐसा नहीं है कि अब तेरी जुस्तजू नहीं रही,
बस टूट कर बिखरने की आरज़ू नहीं रही..
ऐ मौत तुझे भी गले लगा लूँगा जरा ठहर,
अभी है आरज़ू सनम से लिपट जाने की..
तुझसे मिले न थे तो कोई आरजू न थी,
देखा तुम्हें तो तेरे तलबगार हो गये..
वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए,
जीने की आरज़ू में कई बार मर गए..
ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू,
हम किससे करें बात, कोई बोलता ही नही..
मेरे जीने की ये आरजू तेरे आने की दुआ करे,
कुछ इस तरह से दर्द भी तेरे सीने में हुआ.. करे।
सितारों की महफ़िल ने करके इशारा ,
कहा अब तो सारा जहाँ है तुम्हारा,
मुहब्बत जवाँ हो, खुला आसमाँ हो,
करे कोई दिल आरजू और क्या..
इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियो की आदत हो गयी है,
न सीकवा रहा न शिकायत किसी से,
अगर है तो एक मोहब्बत,
जो इन तन्हाइयों से हो गई है..
छोड दी हमने हमेशा के लिए
उसकी आरजू करना,
जिसे मोहब्बत की कद्र ना हो
उसे दुआओ मे क्या मांगना..
आँखो की चमक पलकों की शान हो तुम,
चेहरे की हँसी लबों की मुस्कान हो तुम,
धड़कता है दिल बस तुम्हारी आरज़ू मे,
फिर कैसे ना कहूँ मेरी जान हो तुम..
है आरज़ू एक रात तुम आओ ख्वाब में,
बस दुआ है उस रात कि सुबह न हो..
उम्र-ए-दराज़ मांग के लाये थे चार दिन,
दो आरज़ू में कट गए दो इंतजार में,
तुम्हारी आरज़ू मे मैने अपनी आरज़ू की थी
ख़ुद अपनी जुस्तुजू का आप हासिल हो गया हूँ मै..
कटती है आरज़ू के सहारे ज़िन्दगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना नहीं..
कैसी ख़्वाहिश, कौन-सी आरज़ू…
वक़्त ने जो थमा दिया, वही लेकर चल दिए..
न खुशी की तलाश है न गम-ए-निजात की आरजू,
मैं खुद से भी नाराज़ हूँ तेरी नाराजगी के बाद..
साक़ी मुझे भी चाहिए इक जाम-ए-आरज़ू,
कितने लगेंगे दाम ज़रा आँख तो मिला..
ज़रा शिद्दत से चाहो तभी होगी आरज़ू पूरी,
हम वो नहीं जो तुम्हे खैरात में मिल जायेंगे..
हे आरजू की एक रात तुम आओ ख्वाबोँ मेँ,
बस दुआ हे उस रात की कभी सुबह न हो..
ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना,
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते..
अख़्तर शीरानी
हम क्या करें अगर न तिरी आरज़ू करें,
दुनिया में और भी कोई तेरे सिवा है क्या..
हसरत मोहानी
बहुत अज़ीज़ थी ये ज़िंदगी मगर हम लोग,
कभी कभी तो किसी आरज़ू में मर भी गए..
अब्बास रिज़वी
ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू,
हम किससे करें बात, कोई बोलता ही नही..
तेरी आरज़ू मेरा ख्वाब है,
जिसका रास्ता बहुत खराब है,
मेरे ज़ख्म का अंदाज़ा न लगा,
दिल का हर पन्ना दर्द की किताब है..
साँस रूक जाये भला ही तेरा इन्तज़ार करते-करते,
तेरे दीदार की आरज़ू हरगिज कम ना होगी..
काश की मुझे मुहब्बत ना होती
काश की मुझे तेरी आरज़ू ना होती,
जी लेते यू ही ज़िंदगी को हम तेरे बिन
काश की ये तड़प हमे ना होती..
उलझी सी ज़िन्दगी को सवारने की
आरजू में बैठे हैं,
कोई अपना दिख जाए
शायद उसे पुकारने को बैठे है..
तमन्ना है मेरी कि
आपकी आरज़ू बन जाऊं,
आपकी आँख का तारा ना सही
आपकी आँख का आंसू बन जाऊं..
तेरे सीने से लगकर तेरी आरज़ू बन जाऊ,
तेरी साँसों से मिलकर तेरी खुशबू बन जाऊ,
फासले न रहें कोई तेरे मेरे दरमियाँ,
मैं मैं न रहूँ बस तू ही तू बन जाए..
आरज़ू थी कि एक लम्हा जी लूँ
तेरे कन्धे पे सर रख के,
मग़र ख्वाब तो ख्वाब हैं,
पूरे कब होते हैं?
डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं,
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया..
दाग़ देहलवी
इस लिए आरज़ू छुपाई है,
मुँह से निकली हुई पराई है..
क़मर जलालवी
रखी न होती जो कुछ आरजू मोहब्बत की,
दिल-ओ-दिमाग़ से हम भी हिले नहीं होते..
आरजू इश्क़ मोहब्बत इसमे कभी आना नहीं,
जीना है अगर शान से तो किसी से दिल लगाना नहीं..
आरज़ू यह नहीं कि ग़म का
तूफ़ान टल जाए,
फ़िक्र तो यह है कि कहीं
आपका दिल न बदल जाए,
कभी मुझको अगर
भुलाना चाहो तो,
दर्द इतना देना कि
मेरा दम निकल जाए..
कोई गिला कोई शिकवा जरा रहे तुमसे,
ये आरजू है कि इक सिलसिला रहे तुमसे..
ख्वाइश बस इतनी सी है की
तुम मेरे लफ़्ज़ों को समझो,
आरज़ू ये नही की लोग
वाह वाह करें..
लुत्फ़ दूना हो जो दोनों घर मिरे आबाद हों,
तू रहे पहलू में तेरी आरज़ू दिल में रहे..
जलील मानिकपूरी
बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए,
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते..
मजरूह सुल्तानपुरी
यह आरजू नहीं कि किसी को भुलाएं हम,
न तमन्ना है कि किसी को रुलाएं हम..
कोई गिला कोई शिकवा ना रहे आपसे
यह आरज़ू है कि सिलसिला रहे आपसे,
बस इस बात की बड़ी उम्मीद है आपसे
खफा ना होना अगर हम खफा रहें आपसे..
आरज़ू, हसरत, तमन्ना और ख़ुशी कुछ भी नही,
ज़िन्दगी में तू नही तो ज़िन्दगी कुछ भी नही..
आरज़ू ज़िन्दगी हसरत तमन्ना. कटती है
आरज़ू के सहारे ज़िन्दगी, मत पूछो कैसे.
गुजरता है हर पल तुम्हारे बिना,
कभी मिलने की हसरत कभी देखने की तमन्ना..
ऐसा नहीं की ज़िन्दगी में कोई आरजू ही नहीं,
पर वो ख्वाब पूरा कैसे करूँ जिसमे तू ही नहीं..
ये हवा, ये रात ये चाँदनी
तेरी एक अदा पे निसार हैं,
मुझे क्यों ना हो तेरी आरजू
तेरी जुस्तजू में बहार है..
एक पत्थर की आरजू करके,
खुदको ज़ख्मी बना लिया मैंने..
थाम लेना हाथ मेरा कभी पीछे जो छूट जाऊँ
मना लेना मुझे जो कभी तुमसे रूठ जाऊँ,
मैं पागल ही सही मगर मैं वो हूँ
जो तेरी हर आरजू के लिये टूट जाऊँ..
अब तुझसे शिकायत करना,
मेरे हक मे नहीं,
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