Love Shayari ka behatareen collection hindi me jise copy karke apne friend love ya kisi chahne wale ko text send kar sakte hain hamne is page me unique love shayari ko collect kiya hai jise lovers ek dusre ko apne feelings ke hisab se select kar ke whatsapp ya text message kar sakte hain. kahi koi mistake ho ya aap koi shayari is page me publish karana chahte hain to niche comment karein.
तेरा ख़याल तेरी तलब और तेरी आरज़ू,
इक भीड़ सी लगी है मेरे दिल के शहर में।
दिल लेके मुफ्त कहते हैं कुछ काम का नहीं,
उल्टी शिकायतें हुईं अहसान तो गया।
चलो दिल की अदला-बदली कर लें,
तड़प क्या होती है समझ जाओगे।
रोज़ रोज़ गिर कर भी मुकम्मल खड़ा हूँ,
ऐ मुश्किलों देखो मैं तुमसे कितना बड़ा हूँ।
बिगाड़ के रख देती है ज़िन्दगी का चेहरा,
ए-मोहब्बत… तू बड़ी तेजाबी चीज़ है।
क्या बताये… कैसे कैसे मिल जाते हैं लोग ,
रहमदिल क्या हुए रोज छल जाते हैं लोग।
चटख़ रहा है जो… रह रह के मेरे सीने में,
वो मुझ में कौन है जो टूट जाना चाहता है
हर वक़्त नया चेहरा… हर वक़्त नया वजूद,
आदमी ने आईने को, हैरत में डाल दिया है।
तबाह होकर भी तबाही दिखती नही,
ये इश्क़ है इसकी दवा कहीं बिकती नहीं।
लोग तलाशते है कि कोई… फिकरमंद हो,
वरना कौन ठीक होता है यूँ हाल पूछने से।
जिसके लफ़्ज़ों में हमे अपना अक्स मिलता है,
बड़े नसीबों से ऐसा कोई शख़्स मिलता है।
कौन हूँ मैं…. ऐ जिंदगी तू ही बता,
थक गया हूँ मैं खुद का पता ढूँढते ढूंढ़ते।
वो साथ थे तो एक लफ़्ज़ ना निकला लबों से,
दूर क्या हुए… कलम ने क़हर मचा दिया।
निगाहें नाज करती है फलक के आशियाने से,
रूठ जाता है खुदा भी किसी का दिल दुखाने से।
भीड़ सी हो गई थी… उसके दिल मे,
हुआ कुछ यूं कि मैं फिर निकल आया।
ज़ख़्म खरीद लाया हूं बाज़ार-ए-इश्क़ से,
दिल ज़िद कर रहा था मुझे इश्क चाहिए।
मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ,
सोचता हूँ कि तुझे हाथ लगा कर देखूँ।
चलो आज अपना हुनर आज़माते हैं,
तुम तीर आजमाओ हम अपना जिगर आज़माते हैं।
शायर कह कर मुझे बदनाम ना करना दोस्तो,
में तो रोज़ शाम को दिन भर का हिसाब लिखता हूँ।
जिसको आज मुझमें हज़ारों गलतियां नज़र आती हैं,
कभी उसी ने कहा था तुम जैसे भी हो… मेरे हो।
वो पत्थर कहाँ मिलता है बताना जरा ए दोस्त,
जिसे लोग दिल पर रखकर एक दूसरे को भूल जाते हैं।
ज़िन्दगी यूँ ही बहुत कम है, मोहब्बत के लिए,
फिर एक दूसरे से रूठकर वक़्त गँवाने की जरूरत क्या है।
तेज़-रफ़्तार हवाओं को ये एहसास कहाँ,
शाख़ से टूटेगा पत्ता तो किधर जाएगा।
मोहब्बत का ख़ुमार उतरा तो, ये एहसास हुआ,
जिसे मन्ज़िल समझते थे, वो तो बेमक़सद रास्ता निकला।
खुशनसीब हैं बिखरे हुए यह ताश के पत्ते,
बिखरने के बाद उठाने वाला तो कोई है इनको।
अगर तुम समझ पाते मेरी चाहत की इन्तहा,
तो हम तुमसे नही तुम हमसे मोहब्बत करते।
ख़ूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं,
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं।
हर नजर में मुमकिन नहीं है बे-गुनाह रहना,
वादा ये करें कि खुद की नजर में बेदाग रहें।
उलझे हुए हैं अपनी उलझनों मे आज कल,
आप ये न समझना के अब वो लगाव नहीं रहा।
सीख जाओ वक्त पर किसी की चाहत की कदर करना,
कहीं कोई थक ना जाए तुम्हें एहसास दिलाते-दिलाते।
क्यों शर्मिंदा करते हो रोज़ हाल पूछकर,
हाल हमारा वही है जो तुमने बना रखा है।
जो मुँह तक उड़ रही थी अब लिपटी है पाँव से,
बारिश क्या हुई मिट्टी की फितरत बदल गई।
मिलावट है तेरे इश्क में इत्र और शराब की,
वरना हम कभी महक तो कभी बहक क्यों जाते।
कसूर ना उनका है ना मेरा, हम दोनो रिश्तों की रसमें निभाते रहे,
वो दोस्ती का एहसास जताते रहे, हम मोहबत को दिल में छुपाते रहे।
आईना फैला रहा है खुद फरेबी का ये मर्ज,
हर किसी से कह रहा है आपसा कोई नहीं।
मोहब्बत थी, तो चाँद अच्छा था,
उतर गई, तो दाग भी दिखने लगे।
तू न कर ज़िक्र-ए-मोहब्बत कोई गम नहीं,
तेरी ख़ामोशी भी सच बयाँ कर देती है।
वहम से भी अक्सर खत्म हो जाते हैं कुछ रिश्ते,
कसूर हर बार गल्तियों का नही होता।
भरे बाजार से अक्सर मैं खाली हाथ आता हूँ,
कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते।
दिल की ना सुन ये फ़कीर कर देगा,
वो जो उदास बैठे हैं, नवाब थे कभी।
वैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं ग़ालिब, वही रोज का फ़साना लगता है,
अभी महीना भी नहीं गुजरा और यह साल अभी से पुराना लगता है।
खूब हौसला बढ़ाया आँधियों ने धूल का,
मगर दो बूँद बारिश ने औकात बता दी।
आज धुन्ध बहुत है मेरे शहर में,
अपने दिखते नहीं, और जो दिखते हैं वो अपने नहीं।
अब ना कोई शिकवा, ना गिला, ना कोई मलाल रहा,
सितम तेरे भी बे-हिसाब रहे, सब्र मेरा भी कमाल रहा।
कहो तो थोड़ा वक्त भेज दूँ,
सुना है तुम्हें फुर्सत नहीं मुझसे मिलने की।
मोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी है,
ये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आते।
देख होंठों को उनके एक बात उठी जेहन में,
होंगे लफ्ज़ वो कितने नशीले जो हो कर इनसे गुज़रते होंगे
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता,
किसी को छोड़ना हो तो मुलाक़ातें बड़ी करना।
क्या कमाल का है तेरा आहिस्ता बोलने का अंदाज़,
कान सुनते कुछ नहीं लेकिन दिल सब समझ जाता है।
यूँ ही एक छोटी सी बात पे ताल्लुकात पुराने बिगड़ गये,
मुद्दा ये था कि सही “क्या” है और वो सही “कौन” पर उलझ गये।
वो दिन गए कि मोहब्बत थी जान की बाज़ी,
किसी से अब कोई बिछड़े तो मर नहीं जाता।
दाम अक्सर ऊंचे होते हैं ख़्वाहिशों के,
मगर खुशियां हरगिज़ महंगी नहीं होती।
होंटों को रोज़ इक नए दरिया की आरज़ू,
ले जाएगी ये प्यास की आवारगी कहाँ।
कहता है तजुर्बा दिल से कि मोहब्बत से किनारा कर लूं,
मगर दिल कहता है कि ये तजुर्बा दोबारा कर लूं।
क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया।
भीड़ में भी आज भी तन्हा खड़े हैं,
जहाँ उनका साथ होना था वहाँ भी अकेले खड़े हैं।
कभी पा के तुझको खोना कभी खो के तुझको पाना
ये जनम जनम का रिश्ता तेरे मेरे दरमियाँ है
तुझसे मिले ना थे तो दिल में कोई आरजू ना थी,
जो दीदार हुआ तेरा तो तेरे तलबगार हो गये।
हमारी सादा-मिजाज़ी की दाद दे कि,
तुझे बग़ैर परखे तेरा एतबार करने लगे।
मोहब्बत कब और किससे हो जाये इसका कोई अंदाजा नहीं होता,
ये वो घर है दोस्तों जिसका कोई दरवाजा नहीं होता।
तुझसे मैँ इजहार-ए-मोहब्बत इसलिए भी नही करता,
सुना है बरसने के बाद बादलो की अहमियत नही रहती।
तमाम गिले-शिकवे भुला कर सोया करो यारो
सुना है मौत किसी को मुलाक़ात का मौका नही देती।
खूबसूरत क्या कह दिया उनको, वो हमको छोड़कर शीशे के हो गए,
तराशा नहीं था तो पत्थर थे, जब तराश दिया तो खुदा हो गए।
तुम्हीं कहते थे कि यह मसले नज़र सुलझी तो सुलझेंगे,
नज़र की बात है तो फिर यह लब खामोश रहने दो।
पता लगा तुम आए थे, सुन कर अच्छा भी लगा,
पर गेरों से पता चला, बेहद बुरा लगा।
भरी मुख़्तसर खुशी तू, बार सब्र आजमा मैं,
तू नमाज-ए-असर गोया, मैं कयाम-ए-हश्र शायद।
तेरी दास्ताँ-ए- हयात को लिखूं किस गजल के नाम सा,
तेरी शोखियाँ भी अजीब, तेरी सादगी भी कमाल…।
घेरा हुआ था हसीनो कि बजं में सब को,
बचा के लाये हैं दिल, सख्त लूट मार से हम
दोनों हाथों से छुपा रखा है रुख्शारों को,
किस तरह भाप लिया, तुमने इरादा मेरा।
किस्मत की एक बात सोच कर मैं हर ग़म सह लेता हूँ,
जब इसने मुझसे हर एक को दूर कर दिया तो
एक दिन इन गमो को भी दूर कर ही देगी।
हमारी इस्तिकामत से तो ये दुनिया भी वाकिफ है दोस्त,
न हम ने मंजिले बदली, न हमने यार बदले हैं।
जिस्म की दरारों से रूह नजर आने लगी,
बहुत अन्दर तक तोड़ गया मुझे इश्क तेरा।
नमक हाथ में ले कर सितमगर सोचते क्यों हो ?
हजारों जख्म हैं दिल पर जहाँ चाहो छिड़क डालो।
उससे कहो के मेरी मोहब्बत को इस तरह न आजमाए,
के उसकी आँखें ही तरस जाएँ मुझे देखने के लिए।
वो कब का भूल चुका होगा प्यार का किस्सा,
ऐ-दिल बिछड़ कर कब किसी को किसी का ख्याल रहता है।
इन को नासिर न कभी आँख से गिरने देना,
उन को लगते हैं मेरी आँख में प्यारे आँसू।
हर शाम ये सवाल के मोहब्बत से क्या मिला?
हर शाम ये जबाब के हर शाम रो पड़े।
ये रस्म, ये रिवाज, ये कारोबार वफ़ाओं का सब छोड़ आना तुम,
मेरे बिखरने से जरा पहले लौट आना तुम।
गुजर गया वो वक़्त, जब तेरी हसरत थी मुझे,
अब तू खुदा भी बन जाये तो भी तेरा सजदा न करूँ।
अर्ज़ सिर्फ इतना है दोस्ती के बारे में,
आदमी गलत समझा आदमी के बारे में।
फूल चाहे थे मगर हाथ में आये पत्थर,
हमने अघोष-ए-मोहब्बत में सुलाए पत्थर।
मैं इस काबिल तो नही कि कोई अपना समझे,
पर इतना यकीन है, कोई अफसोस जरूर करेगा मुझे खो देने के बाद।
कभी फुर्सत मिले तो इतना जरुर बताना,
वो कौन सी मोहब्बत थी जो हम तुम्हें दे ना सके।
भूल जाऊंगा उसी वक़्त उसी पल,
बस तू उससे मिला दे जो मुझसे ज़्यादा चाहता है तुझे।
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