श्री हनुमान जी: अमर योद्धा और चिरंजीवी देवता

hanumanjibigpicture min

हिंदू धर्म में श्री हनुमान जी को अमर योद्धा और चिरंजीवी देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। वे अवतारी भगवान श्री राम के विशेष भक्त और सेवक हैं, जिन्हें हिंदू संस्कृति में वानर सेना का सेनापति भी कहा जाता है। हनुमान जी के जीवन काल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं और उनकी शक्तियों ने उन्हें चिरंजीवी बना दिया।

हनुमान जी का जन्म भारतीय राष्ट्रीय एकता के प्रतीक स्थानीयता के साथ संबंधित है। वे केसरी और अंजना नामक वानर कुमारी के पुत्र हैं। उनके जन्म का कारण माता अंजना की तपस्या और पवित्रता थी, जिसके फलस्वरूप वे पवित्र वानर रूप में प्रकट हुए।

hanumandvarasuryakonigalna min366567510526998439

हनुमान जी की अनंत शक्ति और बल की कथाएं प्राचीन रामायण में विस्तारपूर्वक वर्णित हैं। उन्होंने सूर्य तक को निगलने की योग्यता प्राप्त की थी। तुलसीदास ने उन्हें रामचरितमानस के “सुन्दरकाण्ड” नामक अध्याय में वीरता के रूप में प्रशंसा की है।

hanumanjibigpicture min1197317715472024088

उन्होंने भगवान राम की सेवा करते हुए राक्षसों के विपरीत युद्ध किया और दुष्ट राक्षसों का संहार किया और भगवान राम को विजय दिलाई। जिससे धर्म की पुनः स्थापना हुई और जग में रामराज्य स्थापित हुआ। ऐसा माना जाता है की हनुमान जी चिरंजीवी है और आज भी फोर वन में भगवान राम की तपस्या में संलग्न है और भगवान विष्णु के आठवें अवतार कल्कि की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भगवान हनुमान जी को रामभक्ति का प्रतीक माना जाता है।

हनुमान जी द्वारा किए गए अनेक वीरतापूर्ण कार्यों में से कुछ निम्न हैं:



यहां कुछ दोहे हैं, जिन्हें हनुमान जी के बारे में गाया जाता है:

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज,
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु,
जो दायकु फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके,
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं,
हरहु कलेस बिकार ।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ।। १ ।।

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ।। २ ।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ।। ३ ।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुंडल कुंचति केसा ।। ४ ।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेऊ साजै ।। ५ ।।

संकर सुवन केसरीनंदन ।
तेज प्रताप महा जग बंदन ।। ६ ।।

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ।। ७ ।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ।। ८ ।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ।। ९ ।।

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचंद्र के काज सँवारे ।। १० ।।

लाय सजीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ।। ११ ।।

रघुपति कीन्ही बहुत बडाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।। १२ ।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ।। १३ ।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ।। १४ ।।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ।। १५ ।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।
राम मिलाय राज पद दीन्हा ।। १६ ।।

तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लंकेस्वर भए सब जग जाना ।। १७ ।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।। १८ ।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ।। १९ ।।

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।। २० ।।

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।। २१ ।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ।। २२ ।।

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक ते काँपै ।। २३ ।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ।। २४ ।।

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ।। २५ ।।

संकट तें हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।। २६ ।।

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ।। २७ ।।

और मनोरथ जो कोइ लावै ।
सोइ अमित जीवन फल पावै ।। २८ ।।

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ।। २९ ।।

साधु संत के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ।। ३० ।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ।। ३१ ।।

राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ।। ३२ ।।

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ।। ३३ ।।

अंत काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई ।। ३४ ।।

और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।। ३५ ।।

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।। ३६ ।।

जै जै जै हनुमान गोसाई ।
कृपा करहु गुरु देव की नाई ।। ३७ ।।

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ।। ३८ ।।

जो यह पढै हनुमानचालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ।। ३९ ।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ।। ४० ।।

दोहा

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।

veerhanuman min8261039439619984664


इन दोहों में भक्तों द्वारा हनुमान जी की प्रशंसा की गई है और उनकी शक्तियों, दया और वीरता को व्यक्त किया गया है।


हनुमान जी हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण चिरंजीवी देवता हैं, जो अपनी अनंत कथाओं, बल, शक्ति और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्हें भक्ति और सेवा करने से जीवन में सफलता, आनंद और शांति की प्राप्ति होती है। उनका ध्यान, भजन और प्रार्थना करने से भक्त उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।


Discover more from Banner Wishes

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Scroll to Top

Discover more from Banner Wishes

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading